‘ज़िंदगी जुल्म सही,जब्र सही, गम ही सही
दिल की फरियाद सही, रूह का मातम ही सही’
लिखने वाले ने मन की किस परिस्थिति में ये शेर लिखा होगा,कोई भी संवेदनशील व्यक्ति इसका अंदाजा लगा सकता है क्योंकि ज़िंदगी की विवशताओं पर वश नही और जीना बाध्यता होती है।फ्रायड ने कहा है कि संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसने ज़िंदगी से हार कर जीवन में कभी न कभी असमय मृत्यु की चाहत न कि हो,हाँ जो कमजोर होते हैं,कायर होते हैं,स्वार्थी होते हैं,आक्रोशित होकर परपीड़ा में सुख लेने वाले होते हैं,वो पलायन कर जाते हैं मगर जो विवेकशील होते हैं सिर्फ अपने नही अपनो के बारे में भी सोचते है,वो लड़ते हैं। खुद से समाज से विसंगतियों से और विपत्तियों से।
वो देते हैं चुनौती ज़िंदगी को और कहते हैं कि तूने अपनी ताकत दिखाई अब मेरा हौसला देख। हम अगर सचेष्ट हैं तो हमें अपने आस – पास ऐसे तमाम चरित्र मिल जाएंगे जहां चुनौतियां शर्मशार हुई हैं।
मेरा भी सामना एक ऐसी ही दिलेर महिला से हुआ।गोरी चिट्टी आकर्षक व्यक्तित्व की स्वामिनी पेशे से एम.बी.यस डॉक्टर और कर्म से स्पेसल चिल्ड्रन की मसीहा मददगार,प्रशिक्षक। परिचय दोस्ती में बदला और मनोभावों के आदान प्रदान में वो अपनी ज़िंदगी के पन्ने खोलती गयी ।उसकी ज़िंदगी के पन्ने खुल रहे थे,और मेरी संवेदनाओं की गठरी वो बोल रही थी।मैं विचलित हो रही थी और उसके मौन होते-होते मेरे आसूं दुबक कर बाहर आ ही गए।
वो बता रही थी डॉक्टरी पास करते ही एक पैथोलॉजिस्ट से माँ पिता ने विवाह करा दिया।पति ने उसे प्रैक्टिस करने नही दी बल्कि अपने कलीनिक में एक क्लर्क बना दिया।रिपोर्ट लिखना पैसों का हिसाब करना वगैरा- वगैरा।उसी दौरान ईस्वर की कृपा हुई उसे माँ बनने के संकेत मिले पति के उपेक्षित रवैये से आहत मन लिए वो अल्ट्रासाउंड मशीन में अपने गर्भस्थ शिशु को देखती उससे बातें करती और कहती देख तू मुझे कभी अकेला मत छोड़ना हर वक़्त मेरे साथ रहना।
इतना कह कर वो कुछ पल के लिए ख़ामोश हुई फिर गहरी सांस लेकर बोली शायद उसने मेरी बात दिल से लगा ली और दुनिया में आया तो एक स्पेसल चाइल्ड बन कर जिसमे ऑटिज्म, हैंडीकैप्ट और रितार्डिनेस तीनों समस्याएं हैं जो एक पल के लिए भी मुझे नही छोड़ना चाहता रात को मेरे गले लग कर लेटता है मैं गर्दन इधर से उधर नही कर सकती वो अपने हर काम के लिए मुझ पर निर्भर है ।अपने बच्चे को इस हाल में देखकर मन टूटता है मगर मैंने उसी टूटन को अपनी ताकत बना लिया।आज मै ऐसे ही बच्चों का एक प्रशिक्षण केंद चला रही हु जिसमे लगभग दो सौ बच्चे हैं मेरे बेटे के साथ के पलों को मैं और बच्चों में भी बाट देती हूं और सोचती हूं कि शायद जिंदगी ने मुझे ऐसा बेटा देकर इन तमाम बच्चों के लिए प्रशिक्षण दिया है कि मैं उनकी भाषा ,उनकी हरकत ,उनकी तकलीफो को समझ सकू।
मेरा दर्द और गहरा हो गया जब उसने वताया कि बेटे की उपेक्षा सहन ना कर सकने के कारण उसने पति से तलाक ले लिया और उससे भी ज्यादा मैं दर्द की पराकाष्ठा तक पहुच गयी जव उसने बताया कि उसके इकलौते इंजीनियर भाई ने अपनी बहन का दर्द देखकर कभी भी विवाह ना करने की कसम खा ली है।
वो बता रही थी मैं दर्द से भीग गयी थी वो मुस्कुरा रही थी और कह रही थी आप आईये कभी हमारे स्कूल जिन्दगी का हर दर्द भूल जाएंगी सच कहूँ जो ज़िंदगी के बारे में कुछ समझते ही नही असली जीवन वही तो है सच कहूँ तो मैं नही वो बच्चे मुझे सम्हालते है जिनमें एक मेरे जिगर का टुकड़ा भी है,मेरी ज़िंदगी है।