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उम्र की व्यवस्था बनी व्यवस्थाओं की उम्र

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Dr. Kamal Musaddi

हजारों वर्षों से चली आ रही एक कहावत कि औलाद बुढ़ापे का सहारा होती है। जब समाजशास्त्रियों ने परिवार को परिभाषित किया तो यही कहा “परिवार वो संस्था है जहां बच्चों का जन्म परवरिश का दायित्व और बुजुर्गों की देख रेख होती है”।मगर इस बदलते आधुनिक परिवेश में इस कहावत के ,परिभाषा के अर्थ ही बदल गए हैं।

आज पैतृक व्यवसाय अथवा काश्तकारी से जुड़े लोगों को छोड़ दो तो अधिकांशतः परिवारों के बच्चे नौकरी पेशा हैं।अगर नौकरी पेशा बहू है तो वो किसी की बेटी भी तो है।अब समस्या तब आती है जब आप अपनी नौकरी पेशा बेटी का विवाह कर देते है या फिर नौकरी पेशा बहू लाते है और  उनके प्रसूतिकाल अथवा अन्य शारीरिक परेशानियों के समय बच्चे छुट्टी लेकर आ नही सकते ।अगर समस्या आपकी बेटी के घर है तो बजी आपको उसे सहयोग करना पड़ेगा और बहू की है तो बेटे से रिश्ते बनाये रखने को उसे सहयोग करना होगा।सहयोग भी क्या आर्थिक रूप से संपन्न बच्चों को भी अपने परिवार  वृद्धि के समय अनुभवी हाथों की देखरेख और विश्वसनीय संबंध माँ और पिता के अतिरिक्त न कोई दे सकता है और वो विस्वास करते है।

अपवाद स्वरूप तो कुछ भी हो सकता है।मेरे अपने आस – पास के संसार में,मैं देखती हूँ अपनी जमीं-जमाई गृहस्थी को छोड़कर बच्चों के पीछे भागते माता पिता को।

मेरे परिचय के दायरे में ही मैं ऐसे  दर्जनों माता -पिता को जानती हूँ, जिन्होंने सिर्फ पासपोर्ट -वीजा इसलिए ले रखे हैं कि उन्हें बहू अथवा बेटी की डिलीवरी के समय विदेश जाना है अथवा देश  के किसी अन्य दूर -दराज के शहर में बच्चों के साथ जा कर रहना है।संतान के मोह में दौड़ भाग करते ये ,उम्र के तीसरे पड़ाव पर खड़े  ये माता पिता  यद्यपि कहते कुछ नही मगर घुटनों पर दबाव डालकर उठते -बैठते ,हाँफती साँसों से दौड़ भाग करते ,बच्चों की पसंद की वस्तुएं जुटाते ,बच्चों के गूगल ज्ञान का सामना करते ,बार -बार महीनों बंद पड़ी अपने घर की साफ-सफाई करते ,नौकरों को बिना काम की पगार देते और एक अजीब से थकान भरे सुख को जीते देखती हूँ तो लगता है कि बदलते समय ने परिवार और संतान दोनों की परिभाषा बदल दी है।

ये कहावत भी बेमानी लगती है ,कि बच्चे बुढ़ापे का सहारा होता है।आज सर्वे बताते है कि महानगरों या विदेशों  में नौकरी वाले युवक युवतियाँ अव्वल तो विवाह से कतराने लगे हैं और विवाह कर लेते हैं तो संतानोत्पत्ति से डरते है और अगर सामाजिक दबाव अथवा भावनात्मक कमजोरी के कारण संतान पैदा भी करते हैं तो एक बच्चे  के बाद बुजुर्गों वसे मोर्चा लेने को तैयार हो जाते हैं और साफ शब्दों में पूछते  हैं ” पालेगा कौन?”।

सच तो ये है कि आधुनिक सुख सुविधाओं ने जिंदगी की व्यवस्थाओं का अर्थ ही बदल दिया है।पहले लोग बुढ़ापे की व्यवस्था में जीवन बिता देते थे,अब बुढापा जिंदगी की शुरुवात करने वाले बच्चों की व्यवस्था में लग गया है।इसे ही कहते हैं”हर घड़ी बदल रही है रूप ज़िंदगी”।

Unique e-group launched for Women Exporters

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The Federation of Indian Export Organisations (FIEO) launched Indian Women Exporter e-Group on its FIEO Globallinker platform on the occasion of the International Women’s Day in New Delhi on March 8.

Launching the e-Group, Dr Ajay Sahai, Director General and CEO, FIEO said that this was a unique e-group for the women irrespective of the fact if they are established entrepreneurs,  start-ups, artisans, house-wives or young women planning to start some business of their own.

All categories of women exporters’ in the group can share their experiences, queries, seek clarification, guidance on policy matters related to international trade..

Dr Sahai urged every woman to be a part of this group and make the most of it through regular interaction. FIEO will make available its export promotion programs, provide policy updates, changes in tariff, market access requirements in the group, Dr Sahai added.

A large number of women entrepreneurs, artisans, women exporters shared their success stories providing much encouragement to many women participant present at the function.

Women’s Day-a new commitment to hope

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happy womens day image
Dr.Rupal Agarwal

The International Women’s Day with a theme message of “Balance for Better” was celebrated on March 8. It is nice, to have such a special day exclusively for women to acknowledge their contributions and to glorify their humble efforts for establishing their individual identity in the society.

But how long this glorification lasts? Despite salutations to their power, their contributions to the nation, society and family and their indomitable spirit they are denied an equal status with their counterparts-the men. They are treated as second to men and are given the status of a second grade partner in all ventures.

However, this is not new. Since generations a feeling is inculcated among them that they are not capable of doing most of the things especially the challenging things.  Almost in all countries, the status of women is questioned again and again. Women keep consoling themselves that everything is fine but actually it is not so.

Despite the fact that many of the women all over the globe hold high offices and the governments guarantee equal rights to them. But in practice more than half of them have to face discrimination at every step. They are subjected to heinous crimes, domestic violence and threats to their person on several counts in day to day life.

Year 2018 that sparked off the #Me too campaign after the Harvey Weinstein Scandal in US, inspired most of the victim women to expose those who are in the film and TV Industry, Corporate sector and also in the Media houses.  who put them under physical, mental and sexual harassments.

Through this campaign, women broke their silence and raised their voice against sexual assaults committed upon them. They showed that they were not just the puppets. They are more powerful and independent than before. They are carving a niche every field, yet the issue of gender parity needed new approach.

A survey conducted in 2017 revealed that despite all awareness about raising the women status it would take another one hundred years to meet gender balance in the country which has a lower percentage of women in the workforce as compared to the global average. This is due to biased attitude of the society and  of the families towards girls.

The biased attitude is reflected in educating a girl child, providing health care and giving freedom of decision making to her. Even after getting higher education and higher positions they are still supposed to follow the dictates of the males in their family.

But for making any country a balanced and better place to live, one would have to shun the “son biased” attitude and have to ensure equal opportunities to daughters from the very beginning for developing them into a perfect personality to enable them walk into a balanced and better society.

The theme of International Women’s Day 2019 is grounded in the idea of an exciting future where women expected gender parity, recognition of their abilities as decision makers and resolute partners.

अकेले नहीं हो तुम

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Dr. Kamal Musaddi
अकेले  नही  हो तुम
ये सहमे  से पहाड़
मासूम  बेलें  मजबूत  ताड़
सोये  पाखी  सहमी तितलियाँ
दहकते  जंगल  भटकती  पगडंडियों
सनसनाती  बर्फीली  हवायें
आम आवाम की दुआएं
सब तुम्हारे  साथ है
तुम्हारे करोड़ों  पैर करोड़ों  हाथ है
तुम तो मौत  के साये में
जिन्दगी  के खेल खेले  हो
इस लिये ये मत समझना  मेरे भाई
कि इस कठिन  सफर मे तुम अकेले  हो।
मन्दिरों  की घन्टिया
मस्जिदों  की अजान  खास
गिरिजाघरों  की प्रार्थनाएं
गुरुद्वारों  की अरदास
सुबह के  मंत्र  शाम वन्दन
पूजा  सजदा  आरती  हवन
आशीर्वाद  मे उठे  हाथ
सब है तुम्हारे साथ
तुम तो विष पीकर भी
अमरता  के खेल खेले हो
इसलिये  यह मत समझना
मेरे भाई
कि इस कठिन  सफर  में
तुम अकेले हो।
भाई  के प्रणाम  बहन  की राखी
सूरा  के पद कबीर  की साखी
पिता  का गमछा  मा का आंचल
मीरा  की वीणा  गालिब  की गजल
पत्नी  का सिंदूर  भाभी  की चिकोटी
मुन्नी  की किलकारी  मुन्ने  की लंगोटी
दादी  का हौसला  और
बाबा  का उठा  माथ
सब है तुम्हारे  साथ
तुम तो रिश्तों  की भीड़  मे भी
बकवास  झेले  हो
इस लिये ये मत समझना मेरे भाई
कि इस कठिन  समय में
तुम  अकेले  हो।
                       जय हिंद।

नन्हा हाईटेक गुरू

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  Pooja Prashar

‘यूपीएससी’ सिविल परीक्षा की कराता है तैयारी

हुनर वक्त का मोहताज नहीं होता, वह किसी भी उम्र में किसी को भी चौंका सकता है। खेलने -कूदने की उम्र में बच्चे जहां आज कार्टून देखना या चेस(शतरंज) खेलना पसंद करते हैं वहीं खेल -खेल में भूगोल पढ़ाने का अभिनय ‘गुरु’ बना देगा,यह किसी ने कल्पना नहीं की थी।

तेलंगाना के एक छोटे से कस्बे मंचेरियल का रहने वाला तेरह साल का ‘अमर स्वास्तिक आचार्य थोगिती’ यूट्यूब पर सुर्खियां बटोर रहा है। अपने चैनल के माध्यम से यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी में अपना पूर्ण सहयोग दे रहा
है। 1.87 लाख सब्सक्राइबर द्वारा अंदाजा लगाया जा सकता है कि देश के सबसे युवा यूट्यूबर शिक्षक ‘अमर’ की प्रसिद्धि कहां तक फैल रही है। अमर, अपने वीडियो द्वारा सिविल सेवा के उम्मीदवारों को एटलस में स्थानों और नदियों के नाम याद रखने का सहज तरीका सिखाता है और कठिन से कठिन सवालों का उत्तर बहुत ही सरल तरीके से करने का उपाय भी बताता है।

अमर, पांचवी कक्षा से ही एटलस के साथ खेलता था। उसके पिता ने उसके इस रुझान को एक नया रूप दे, भूगोल पढ़ाना शुरू कर दिया। पिता ‘गोवर्धन आचार्य’ स्वयं सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं और जिले में शिक्षकों को प्रशिक्षण देते हैं। एक
दिन जब अमर शिक्षक बन भूगोल पढ़ाने का अभिनय कर रहा था तभी उसकी माँ ने वीडियो बनाकर उसे ऑनलाइन अपलोड कर दिया। बस शौक, हुनर बन गया और हुनर को मंजिल मिल गई। नौवीं कक्षा के छात्र अमर ने मात्र दस साल की उम्र में यूट्यूब पर ‘लर्न विद अमर’ नाम का चैनल शुरु कर दिया।

पिता के द्वारा मिला ज्ञान और अपनी प्रतिभा को आज अमर अपनी माँ के आशीर्वाद से न सिर्फ यूपीएससी छात्रों को लाभ पहुंचा रहा है अपितु अन्य छात्रों और भूगोल विषय को पसंद करने वाले व्यक्तियों को भी विषय को समझने की नयी युक्तियाँ बता रहा है। यूपीएससी की तैयारी करने वालों को पढ़ाने में गर्व महसूस करते हुये अमर बड़े होकर आईएएस बनना चाहता है, जिससे वह भ्रष्टाचार को मिटा सके। आज, ‘अमर’ की प्रतिभा, उसका अपने कार्य के प्रति लगन और देश के प्रति कर्तव्य, युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है।

शहीदों को भावुक विदाई……..!

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Pankaj Bajpai
देश पुलवामा हमले के बाद अपने पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से न चाहते हुए भी आत्म रक्षा के लिए युद्ध करने को मजबूर हुआ । पूरा देश पुलवामा के शहीदों के बलिदान का बदला लेने के लिए एक जुट था।जहां देखो वहां बस आतंकवाद को प्रायोजित करने वाले अपने पड़ोसी को निस्तोनाबूत करने की चर्चा हो रही थी।
भारत सरकार ने बेहद सतर्कता के साथ अपने दुश्मन देश को उसकी सीमा में घुस कर उसके द्वारा संरक्षित आतंकी ट्रेनिंग सेंटरों को निस्तोनाबूत कर बड़ी संख्या में आतंकवादियों को जमीदोज कर दिया। अपने देश के सैनिकों के इस पराक्रम की खबर जब सुबह देश भर में आग की तरह फैली ।जनता में खुशी की लहर दौड़ गयी।
लोग खुशी से झूम रहे थे,नाच रहे ,मिठाईयां बाट रहे थे। भारत माता जी जय  का नारा चारों ओर गूंजने लगा।मगर अब जश्न के साथ सतर्कता बरतने का भी समय था ये।
सीमा पर और तनाव बढ़ गया । थल ,जल ,और वायु सभी सेनाओं ने मोर्चा सम्हाल रखा था। सीमाओं की गहन निगरानी बड़ा दी गयी।
खुशी के बीच एक खबर ने सभी को स्तब्ध कर दिया।पूरा देश जैसे ठहर सा गया।जब पता चला कि बड़गाम सीमा पर भारतीय वायु सेना का एक हेलीकाप्टर दुर्घटनाग्रस्त हो गया I जिसमें अपने देश के जवान शहीद हो गए।
लोगों में अपने देश के बेटों को खो देने का बहुत दुख था। सभी शहीदों के पार्थिव शरीर को पूरे राजकीय सम्मान के साथ उनके निवास स्थान को भेज दिए गए।जब शहर की सड़कों पर तिरंगे में लिपटे शहीदों की शव यात्रा निकली तो जैसे पूरा शहर साथ चल दिया । भीड़ में न कोई हिन्दू था,न कोई मुस्लिम बस सब थे हिंदुस्तानी।
सभी की आखों में पानी और जुबान पर देश के सपूत के लिए जय घोष था। देश के लिए मर मितना सौ जन्मों के समान है।
धन्य है वो माँ जो आपने बेटे को देश के शहीद हो जाने पर रोती नही बल्कि कहती है मैं अपबे दूसरे बेटे को भी देश की रक्षा के लिए सेना में ही भेजूंगी।
बेहद भावुक उस पल में बस एक बात समझ आयी कि देश के लिए न कोई हिन्दू ,न कोई मुस्लिम ,न कोई सिख ।बस कुछ है तो एक बात की हम सब हिंदुस्तानी है।
किसी भी देश की ताकत उसके हथियार से नहीं आंकी जा सकती है।वो देश सबसे ज्यादा ताकतवर है जहां की जनता में देश के लिए प्रेम और देश के लिए कुर्बान हो जाने का जज्बा होता है।
अपना देश भी विश्व का सबसे शक्तिशाली देश है।क्योंकि यहां का हर नागरिक अपने देश को खुद से ज्यादा प्यार करता है।संकट के इस पल में हम सब एक साथ खड़े दिखे।ये एकता का एहसास हमारी सेना को और शक्तिशाली बना देता है। सैनिकों को ये सुखद एहसास मिलता है कि जिस देश के लिए हम अपना घर परिवार छोड़ कर देश की सेवा कर रहे है।वहां के नागरिकों के दिल मे उनके लिए कितना प्रेम और स्नेह है।।।
               देश सेवा से बड़ा कोई धर्म नहीं

हॉस्टल लाइफ की वो अंतिम रात

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Dr. Asha Singh

“आशा ये पल हमें याद आएंगे” रूपा ने अपने बैग की ज़िप बन्द करते हुए मुझसे कहा। “हाँ रूपा, न मालूम कब इतने वर्ष निकल गए, हॉस्टल लाइफ का पता ही नहीं चला और देखो अब आज रात के बाद हम सब हमेशा के लिए एक दूजे से दूर हो जाएंगे।” कहते हुए मेरे सामने पंतनगर में बिताये वर्ष किताब के पन्नों की तरह पलटने लगे।

आगरा फोर्ट एक्सप्रेस से पंतनगर स्टेशन पर उतरने के बाद जब पहली बार विश्वविद्यालय में प्रवेश किया तो मालूम ही नहीं था कि यहाँ से इतनी यादें जुड़ जाएंगी। वो रैगिंग पीरियड में अलग-अलग रंग के कपड़े पहनना और बालों में खूब सारा तेल डालकर औऱ बाल चिपका कर कंघी करना, सीनियर को झुक कर सलाम करना और सिर झुका कर चलना, तब भले ही अच्छा नहीं लगता था लेकिन अब उसकी यादें सचमुच मन को आह्लादित कर रहीं थीं।

“आगे तुमने क्या सोचा है?” तभी चंद्रलेखा ने उदास मन से पूछा। “कोई खास नहीं, कोई जॉब देखेंगे, और तुम”। सुलेखा ने खिड़की से बाहर देखते हुए जवाब दिया। “करना तो बहुत कुछ चाहती हूं पर तुम तो जानती हो घर वालों ने तो मेरी शादी भी पक्की कर रखी है”। चंद्रलेखा उदास हो गयी। “मैं कार्ड भेजूंगी तुम लोग आना जरूर” उसने दोहराया। “कोशिश तो पूरी करेंगे चंद्रलेखा पर तुम तो जानती हो भले ही हमारी शादी तय ना हो पर भारत में लड़की डिग्री लेकर घर पहुंची नहीं कि वर चाहिए विज्ञापन की भेंट चढ़ जाती है और फिर कहाँ मिलना हो पाता है” उसकी वर्षों की रूममेट सुनीता ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।

सबकी बातों के बीच मुझे विश्वविद्यालय की अपनी पहली क्लास याद आ गयी। उस समय लगता था ये सब कितना बकवास है। रात को 2 बजे तक नींद में झूमते हुए पढ़ो और सुबह रटा रटाया एग्जाम में उतार आओ। पर आज लग रहा था कि बस एक बार फिर ओवर्ली एग्जाम हो और वैसे ही पढ़ें। वही नोट्स व किताबें जो सेमेस्टर पूरा होते ही फेंक देते थे आज उसके एक-एक पन्ने कीमती लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि अपने जीवन के इस इतिहास को कितना संजो लूं।

मन को बहलाने के लिए बगल के कमरे में गयी तो शिप्रा अपने हाथ में एक कागज पकड़े शून्य में निहार रही थी। उसके एक फ्रेंड का कोई पुराना पत्र था। मेरे पूछने पर वो फफक के रो पड़ी, पर बोली कुछ नहीं। “अब हम कभी नहीं मिल पाएंगे” बस इतना ही निकला था उसके मुंह से। ज़िंदगी भी कितनी विडंबनाओं से भरी होती है, पल भर में ही सारे सपने बनते या बिगड़ जाते हैं। कभी कभी हम किसीसे इतना प्रेम कर बैठते हैं कि बिछड़ने का दुःख जीवन भर कचोटता रहता है।

टहलते हुए छत पर पहुंचने पर देखा कि सायरा भी वहां खड़ी अपलक दूर जलते लैंप पोस्ट को निहार रही थी। पंतनगर की सड़कें, मार्केट, होस्टल औऱ हाँ कतारबद्ध अशोक के पेड़, अब सब छूट जाने वाले थे। वो सहपाठियों से नोंकझोंक, चुपचाप ब्लैक बोर्ड पर अगली क्लास की प्रोफेसर का सहपाठियों में प्रचलित निक नेम लिख देना, मास बंक और मस्ती में एग्जाम पोस्टपोन कराना अब ज़िंदगी में कभी नहीं दोहराया जाने वाला था। “यार आशा कभी सोचा ही न था कि एक दिन होस्टल की सब साथी बिछड़ जाएंगी, अब देखो ना आज पूनम का चांद भी अच्छा नहीं लग रहा, याद है ऐसी ही एक चांदनी रात को तुम्हारा बर्थडे यहीं छत पे बनाया था तो यही चाँद कितना मनमोहक लग रहा था”। सायरा ने याद दिलाया। मेरा वो होस्टल लाइफ का पहला बर्थडे था। हम सबने आधी रात तक छत पर मस्ती की थी औऱ नेक्स्ट डे फुल बंक।

मेरी प्रिय मित्र वर्षा की बस रात में ही थी। उसने जब जाने के लिए बैग उठाया तो मन हुआ कि बस एक दिन और सब बैचमेट्स रुक जाएं और वैसे ही मौज मस्ती करें, लेकिन वक़्त कभी नहीं रुकता। वर्षा आंखों में आंसू भरकर मुझसे लिपट पढ़ी। मैं उसे जाते हुए नहीं देख सकती थी। मैंने मुंह मोड़ लिया। वो अनमने मन से अपना बैग उठा के बाहर निकल गयी। मैं भागते हुए बाहर पहुंची। वर्षा रिक्शे पर बैठी दरवाज़े की ओर देख रही थी। “मुझे देखते ही बोली मुझे पता था तू ज़रूर आएगी”। उस चांदनी रात में मैं आंखों से ओझल हो जाने तक वर्षा के रिक्शे को देखती रही। मेरी प्रिय साथी अपने नए जीवन की तरफ बढ़ चुकी थी। मैं भरे मन से होस्टल लाइफ की यादों को समेटे अपने छात्रावास की सीढ़ियां चढ़ रही थी। किसी कमरे से लता जी के एक पुराने गाने की हल्की सी धुन आ रही थी, – ‘किसी का प्यार लेके तुम, नया जहां बसाओगे, ये शाम जब भी आएगी, तुम हमको याद आओगे’।

उष्ट्रासन (Camel Pose)

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Dr. S.L.YADAV
बिधि,लाभ एवं सावधानियॉं –
उष्ट्रासन (Camel Pose) –इस आसन का आकर चूँकि बैठे हुए ऊँट (उष्ट्र) के समान बनता है।  इस लिए इसे उष्ट्रासन (Camel Pose) के नाम से जाना जाता है।यह आसन कमर दर्द एवं पीठ  दर्द को ठीक करके रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है।
 
उष्ट्रासन की बिधि –सबसे पहले किसी समतल जमींन पर योग मैट (चटाई ) बिछाकर बज्रासन में बैठते हैं। फिर दोनों घुटनों एवम दोनों पँजों में 1 से 1.5 फिट का अन्तर करके घुटनों को जमीन  पर रखते हुए ऊपर वाले शरीर को सीधा करते हैं।पैर के पंजे पीछे की तरफ खींच देते हैं। फिर  चित्रानुसार कमर से पीछे झुकते हुए दोनों हाथ से दोनों एड़ियों को पकड़ते है यदि सम्भव हो तो दोनों हाथ की हथेलियों को पैर के तलवे पर रख देते है।अब सीने को ऊपर की तरफ खींचते हैं  एवं कमर को घुटनों की तरफ लाने का प्रयास करते है। यथासम्भव अपनी शारीरिक क्षमतानुसार या 2 से 3 मिनट रोककर वापस आते है। साँसे सामान्य रखते है। आसनो का समय धीरे धीरे बढ़ाते है।गर्दन को पीछे की तरफ झुका देते है।  
 
  उष्ट्रासन के लाभ –
  • कमर एवं पीठ दर्द को ठीक करने का सबसे अच्छा आसन है। 
  • घुटनों की मांसपेशियों को मजबूत बनाकर घुटनों को मजबूत बनाता है। 
  • फेफड़े को खिचाव  देकर उन्हें मजबूत बनाता है। 
  • हृदय की मांसपेशियों को खिचाव देकर हृदय को मजबूत बनाता हैं। 
  • सीने में उभार उत्पन्न करके सही आकार प्रदान करता हैं। 
  • कमर एवं जंघों को पतला बनाता है। 
  • किडनी को मजबूत बनाता है। 
  • रीढ़ की हड्डी को लचीला बनाता है एवं उसे सही आकार प्रदान करता है।
  • पाचन शक्ति को मजबूत बनाता है। 
  • मासिक चक्र को सामान्य बनाता  है। 
  • गर्दन को पीछे झुकाने से गर्दन के दर्द में लाभ मिलता है  

उष्ट्रासन में सावधानियाँ  –

घुटने की जादा तकलीफ,चक्कर आने की समस्या ,में योग चिकित्सक की देख रेख में ही करना चाहिए। 

साहित्य में ठगी……..!

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G.P.VARMA
साहित्य में चोरी का आरोप नया नहीं। रचनाकारों का लुटना भी आम है।लेकिन उन्हें ठगा जाना गले नहीं उतरता।कुछ दिन पूर्व दिल्ली में एक विशाल पुस्तक मेले का आयोजन हुआ था।वहां प्रकाशकों का जमघट था।अनेक नई व पुरानी पुस्तकों का वहाँ अपार भंडार था।कुछ नई पुस्तकों का विमोचन भी होना था।वह हुआ भी ।
इस विमोचन में कुछ रचनाकारों के साथ ठगी हो गयी। अपनी पुस्तक के विमोचन अवसर पर शामिल होने के लिए वह दिल्ली पहुँचे ।होटल में ठहरे।अच्छा खासा खर्चा आया।लेकिन दुःख तब हुआ जब उनके हाथ कुछ नही आया।उनकी पुस्तक का विमोचन नही हुआ।उन्हें निराशा और हताश मब से अपबे अपने शहरों को लौटना पड़ा।
मेरे एक मित्र रचनाकार भी जब वापस आये तो बहुत उदास थे।बधुत पूछने पर बताया कि उन्होंने एक कहानी संग्रह तैयार किया था।वह किसी प्रकाशक की खोज में थे जो उनके काव्य संग्रह को प्रकाशित्वकर दे।उन्होंने अनेक बड़े व छोटे प्रकाशकों से संपर्क किया।बात नही बनी।
एक दिन फेस बुक के माध्यम से उनका संपर्क एक प्रकाशक से हुआ।प्रकाशक ने बताया कि वह पच्चीस नवोदित किंतु विलक्षण रचनाकारों  की कृतियों के साथ प्रकाशन व्यवसाय में उतर रहा है। इन रचनाकारों की कृतियाँ ओजपूर्ण हैं किंतु हिंदी साहित्य में यह सभी गुमनामी का दंश झेल रहे हैं।उसने आश्वाशन दिया कि सभी प्रकाशित पुस्तकों का प्रचार फेस बुक पर धूम धाम से होगा।
मेरे मित्र प्रकाशक से प्रभावित हुए और उन्होंने अपनी पांडुलिपी उसे दे दी।रॉयल्टी तय हो गयी थी।लेकिन शर्तों की लिखा पढ़ी अभी शेष थी।पुस्तक प्रकाशन के लिए रुपये दस हजार की अग्रिम धनराशि भी मेरे मित्र ने प्रकाशक के अनुरोध पर उसको दे दी ।यह राशि पुस्तक के प्रकाशन के बाद वापस दी जानी थी।
कुछ डिंबाद प्रकाशक का फ़ोन आया कि आर्थिक संकट आ गया है।संभव हो तो बीस हजार रुपये तुरंत दे दें ताकि पुस्तक प्रकाशन का कार्य न रुके।कुल तीस हजार रुपये की यह राशि मेला खत्म हो जाने पर लौटा दी जाएगी ।इस राशि पर व्याज नहीं दिया जाएगा।बाद में प्रतिवर्ष निर्धारित रॉयल्टी का भुगतान होता रहेगा।
लेखक ने प्रकाशक की बात मान ली ।उसे बीस हजार रुपये दे दिए। प्रकाशक ने मेले के दूसरे दिन पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम रखा।प्रकाशक ने मेले में हाल तथा स्टाल का नंबर भी बता दिया।
लेखक नियत तिथि व समय पर मेला स्थल पहुँच गए।उनके साथ उनके कुछ अभिन्न मित्र भी थे।सभी लोग बहुत देर तक वह बताए गये नंबर वाला कक्ष तथा स्टाल ढूढ़ते रहे।लेकिन दोनों में से कुछ भी नहीं मिला।
थक कर उन्होंने प्रकाशक को फ़ोन मिलाया पर फ़ोन नही उठा।फ़ोन बन्द था।काफी कठिनाई के बाद उन्होंने उसका पता खोज निकाला।वह गाज़ियाबाद का रहने वाला था।वहां पहुचने पर पता चला कि वह प्रकाशन उद्योग में आने से पहले कबाड़ का काम करता था।बाजार में उसकी  उधारी बढ़ गयी थी।एक दिन वह बिना किसी को बताये वह किराए के मकान  को छोड़कर चला गया।मकान का किराया भी नही दे गया।
वहीं लेखक की मुलाकात तीन अन्य रचनाकारों से हुई।उनकी भी पीड़ा समान ही थी।वह भी ठगी के शिकार हुए थे। ठगे गये रचनाकार एक दूसरे से अपनी व्यथा बताने लगे।उन्हे शिकायत यह नही की उनकी पुस्तक का न तो प्रकाशन हुआ और न ही उसका विमोचन।उनकी परेशानी थी कि उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई का एक बड़ा भाग ठगी को होम कर दिया।वह अपनी यह पीढ़ा किसी दूसरे को बता भी नही सकते थे। भला कैसे बताते की पैसा देकर पुस्तक छपवाने गए थे और ठगे गए।
वह यह सोचकर ही स्वयं को ढांढस बंधा रहे थे कि शायद “खरीदे” हुए सम्मान से साहित्य की दुनियां ऐसे ही चलती है।रचनाकार कभी लुटता है । कभी ठगा जाता है।फिर भी यदि वह ढिठाई नही छोड़ता तो उसकी रचना की मौलिकता भी पोस्टमार्डम के दायरे में आ जाती है।उनको संवेदनशील मन अवशाद के दल-दल में फंस जाता है।

Threat to aquatic life in rivers

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G.P.VARMA

There is big threat to aquatics in rivers. Water pollution in the rivers has reached at an alarming point as it has now started affecting aquatic life. Due to heavy pollution in Ganga and Yamuna number of species of aquatics is on fast depletion. Besides, the fishes are falling prey to tumour and other serious diseases.

The consumption of these fishes can cause cancer in human beings said the director of Zoological Survey of India (ZSI) Dr Kailash Chandra.

Chandra said that during the past two decades almost all the rivers including Ganga and Yamuna have become highly polluted and several species of aquatics were depleted in the rivers during this period while several others were on the verge of extinction in these rivers. The species of frogs, ducks, tortoise, White- bladed heron were the worst affected Chandra said.

Earlier there used to be more than three hundred aquatic species in these rivers but at present there are only two hundred species left. Out of which many were in the first stage of extinction, a study revealed.

The study further revealed that out of total number of 683 aquatics found in the Indian rivers 76 species of aquatics were completely depleted and about 209 were expected to get extinct within next one or two years.

The extinction of aquatics would create environmental imbalances.

In order to protect aquatics the scientists at the ZSI were making efforts to create species of insects which would help in destroying the plastic waste and the plants to check the water so that the aquatics could be saved.

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