भुजंगासन दो शब्दों से मिलकर बना है भुजंग +आसन। भुजंग जिसका अर्थ ‘साँप’ (सर्प) होता है और आसन जिसका अर्थ उसकी ‘बनावट’ से होता है। इस प्रकार ऐसी बनावट जो सांप जैसी हो भुजंगासन कहलाती है। भुजंगासन को अंग्रेजी में Cobra Pose कहा जाता है। चूकि सांप अपनी जहर के लिए जाना जाता है इस लिए यह आसन शरीर को विजातीय द्रव्यों के दुष्प्रभाव से बचाता है। यह आसन ह्रदय को सुरक्षा प्रदान करते हुए मजबूत बनाता है। पहले के लोग जंगलों में निवास करते थे जिसमे हमेशा उन्हें विष वाले जन्तुओ का खतरा बना रहता था वे भुजंगासन को करके अपने शरीर को सुरक्षित रखते थे। भुजंगासन का प्रतिदिन अभ्यास करने से कंधे, हाथ, कोहनियाँ, किडनी और लीवर को मजबूती मिलती और शरीर को अनेकों रोगों से मुक्ति मिलती है।
भुजंगासन की विधि-
सबसे पहले किसी समतल जमीन पर योग मैट बिछाकर पेट के बल लेट जाते है। दोनों पैर सीधा रखते हुए दोनों एड़ियों को आपस में मिलाकर पैर के पंजे पीछे की तरफ खींच कर रखते है। दोनों हाथ की कोहनियों को मोड़कर दोनों हाथ की हथेलियों को कन्धों के ठीक नीचे रखते है। अब हाथ की हथेलियों के सहारे आगे से सिर, कंधे और सीने को धीरे धीरे तब तक उठाते हैं जब तक कि नाभि के ऊपर वाला भाग पूरी तरह हवा में उठ न जाये लेकिन ध्यान रहे नाभि जमीन पर लगी रहे। आप की निगाहें (भ्रूमध्य ) जहां बिंदी अथवा टीका लगाते हैं उस स्थान को देखती रहें यथासंभव आखें खोलकर रखें। मुस्कुराते हुए सांसे हमेशा सामान्य तरीके से लेते रहे।
भुजंगासन की समय सीमा-
वैसे तो प्रत्येक आसन की समय सीमा व्यक्ति की अपनी क्षमतानुसार ही होता है लेकिन यदि रोक सके तो 3 मिनट 48 सेकेण्ड तक रोकना सबसे अच्छा माना जाता है। कम से कम 1 मिनट जरूर करना चाहिए। शुरुआत में इसे 2 बार में सकते हैं।
भुजंगासन के लाभ –
• भुजंगासन के अभ्यास से शरीर पर, भोजन में उपस्थित केमिकल्स के दुष्प्रभाव नहीं होते।
• पाचन संस्थान को मजबूत बनाता है एवं पाचक रसो के रिसाव को बढ़ा बढ़ा देता है।
• भुजंगासन के अभ्यास से भोजन पचाने की क्षमता बढ़ जाती हैं।
• रीढ़ की हड्डी की समस्यायों को होने से बचाता है।
• स्तनों के ढीलेपन को ठीककर उन्हें सही आकार प्रदान करता है एवं स्तनों के सही विकास में मदद करता है।
• ह्रदय को सुरक्षा देते हुए मजबूत बनाता है।
• कब्ज, गैस, अपच, खट्टी-मीठी डकारें को दूर करने का सबसे अच्छा आसन हैं।
• पूरे शरीर को तरोताजा बनाता है।
• यह आसन प्रतिदिन करने से कंधे, हाथ, कोहनियाँ, किडनी और लीवर को मजबूती मिलती है।
• कमर और पेट की अतरिक्त चर्बी (फैट) को कम करके इन्हे सुडौल बनाता है।
• भुजंगासन का अभ्यास गर्दन दर्द को दूर करता है।
• साँस सम्बन्धी दोषो को दूर करके साँस को सुचारू बनाता है।
• भुजंग आसन के नित्य प्रयोग से महिलाओं को मासिक चक्र से जुड़ी समस्याओं में लाभ मिलता है तथा प्रजनन सम्बन्धी रोग भी दूर हो जाते हैं।
• इस आसन को प्रति दिन करने से रीढ़ की हड्डी लचकदार बन जाती है।
भुजंगासन करते समय सावधानियाँ –
• भुजंगासन का अभ्यास; 6 महीने से कम का कोई आपरेशन हुआ हो, तो नहीं करना चाहिए।
• क्षय रोग में इसका अभ्यास वर्जित है।
• पेट के अल्सर (घाव) में भुजंगासन नहीं करना चाहिए।
• हार्निया से पीड़ित व्यक्ति को नहीं करना चाहिए।
• गर्भवती अवस्था, एवं मासिक चक्र के समय भुजंगासन का अभ्यास महिलाओं को नहीं करना चाहिए।
विशेष -किसी भी आसन का अभ्यास किसी योग्य योग विशेषज्ञ की देखरेख में ही करना चाहिए। आसन हमेशा शौंच से निवृत्ति होकर खाली पेट किसी स्वच्छ हवादार जगह पर ही चाहिए। आसन शांत मन से करना चाहिए। यथासंभव दोनों हाथों पर शरीर का कम से कम वजन आये ऐसा प्रयास करें।
शानदार लिखा आपने
million thanks
समाज में भागीदारी … यह भी शिक्षित होने के मापदड हैं जो आप के माध्यम से साकार हो रहा है।
बुहत ही अच्छी शुरुआत आप की पूरी टीम को ह्रदय से धन्यबाद।
excellent explanation of bhojang assana.
very well written.keep posting such posts yo make us aware and alert.lots of blessings to you sohan sir.
million thanks for compliment.
Bahut badiya explanation in simple words
Very useful
Thank you so much dear
Dr sahab saral vidhi se sikhate hain aap wakai mein aap ek mahaan shikshak hain
लाख लाख धन्यबाद जी।
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