एक गाँव : तीन नाम

0
1432
Mohini Tiwari

दुनिया का हर एक कोना अपनी विलक्षणता के लिए जाना जाता है। इसी क्रम में हरियाणा के सिरसा जिले के पैंतालीसा क्षेत्र में बसा एक गाँव भी शामिल है जोकि राजस्थान की सीमा से सटा हुआ है और अपने तीन नामों के कारण चर्चा का विषय है। लगभग 200 वर्ष पूर्व बसे इस गाँव के 3 नाम है – जोड़कियां , जोड़ांवाली और जोड़ियां।

गाँव के बुजुर्गों के अनुसार प्राचीन काल में गाँव में पेयजल व्यवस्था के लिए कई जोहड़ियाँ बनाई गई थी इसलिए इस जगह को लोग जोहड़ीवाला कहकर पुकारने लगे थे किंतु धीरे-धीरे सामाजिक एवं भाषायी परिवर्तन के कारण गाँव का नाम जोहड़ीवाला से बदलकर जोड़कियां हो गया , जबकि स्कूल रिकॉर्ड में गाँव को जोड़ांवाली लिखा जाता है और राजस्व विभाग में जोड़ियां नाम दर्ज है। तीन-तीन नामों की धरोहर वाले इस अनोखे गाँव में सिद्ध बाबा गोपालपुरी का डेरा है जिसके प्रति ग्रामीणों में अटूट आस्था है। डेरे में हर वर्ष 20 दिसंबर को बाबा के निर्वाण दिवस पर ग्रामीणों द्वारा जागरण एवं भंडारे का आयोजन किया जाता है जिसमें आस-पास के गाँवों के अनेक श्रद्धालु एकत्र होते हैं। डेरे में बाबा गोपालपुरी का धूणा है जहाँ वर्षभर अखंड ज्योत जलती रहती है। मान्यता है कि इसी स्थान पर बाबा गोपालपुरी ने 12 वर्षों तक कठोर तप किया था इसलिए यहाँ धोक लगाने से सभी मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं।

इस डेरे के अतिरिक्त गाँव में प्राचीन संकटमोचन हनुमान मंदिर , रामदेवजी का रामदेवरा , जाहरवीर गोगाजी की गोगामेड़ी , प्राचीन कुआँ एवं प्राचीन पीपल का पेड़ है। धार्मिक , सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक दृष्टिकोण से समृद्ध इस गाँव में लगभग 1100 मतदाता हैं किंतु यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भी ग्रामीणों को बिजली , शिक्षा , पेयजल व परिवहन संबंधी मूलभूत सुविधाओं के लिए जद्दोजहद करनी पड़ती है। गाँव में सिर्फ आठवीं कक्षा तक ही सरकारी स्कूल है। उच्च शिक्षा के लिए बच्चों को गाँव के बाहर जाना पड़ता है , किंतु सुचारू परिवहन व्यवस्था न होने के कारण शिक्षा एवं व्यापार दोनों ही बाधित होते हैं। जिला मुख्यालय से 30 किलोमीटर दूर स्थित , लगभग 2200 की आबादी वाला यह गाँव विकास के कार्यों में बहुत पिछड़ा है।

देश में पंचायतीराज व्यवस्था शुरू होने पर सर्वप्रथम राजेराम बैनीवाल को गाँव का सरपंच बनाया गया था। इसके बाद से समय-समय पर कई सरपंच आते-जाते रहे किंतु किसी ने भी विकास कार्यों की ओर अपेक्षित ध्यान नहीं दिया , परिणामस्वरूप डिजिटल भारत का यह गाँव आज भी अपने उद्धार को तरस रहा है।

मोहिनी तिवारी