नया सवेरा, नयी ज़िन्दगी

0
1357
Dr. Kamal Musaddi
बचपन से लेकर अब तक समझ में नहीं आया कि नया वर्ष आने पर इतनी ख़ुशी, इतना आनंद, इतना उत्साह क्यों होता है लोगों के मन में? होता भी है या सिर्फ दिखावा होता है या फिर रिश्तों के नवीनीकरण का एक बहाना।
31 दिसम्बर की रात 12 बजे से जो फ़ोन ने टुकटुकाना शुरू किया तो अब तक टुकटुका रहा है। व्हाट्स ऍप पर हरी बिंदिया और फेसबुक पर शुभकामना संदेशों ने:; फ़ोन पर इतना लोड बढ़ा दिया कि बेचारा गर्म होने लगा। मैंने भी “आपको भी, सेम टू यू” या ‘आभार’ और ‘धन्यवाद’ जैसे लोडेड वाक्यों से अपने सामाजिक दायित्व यूँ कहूँ कि लोकाचार को निभाया। मगर फिर वही प्रश्न मन में उभरता कि एक तारीख बदलने के अलावा क्या बदला है ज़िन्दगी में? मगर लोगों के उत्साह भी बेबुनियाद तो नहीं होते सो अपने मन को टटोलने लगी कि मेरा मन इस नए वर्ष को कैसे अनुभव कर रहा है।
दरअसल जब तारीखों की पुनरावृत्ति होती है तो उनसे जुड़ जाती हैं स्मृतियाँ; जो सुखद भी होती है और दुखद भी। मसलन अपनी जन्म तारीख़, बच्चों के जन्म, विवाह, माता पिता की स्मृति शेष तारीखें या फिर मुलाकातों की स्मृतियाँ कब किस रिश्ते से कहाँ मिले या फिर यात्राओं की स्मृतियाँ। कुल मिलाकर अगर गंभीरता से सोचे तो हमारी सोच का प्रतिशत भविष्य के विषय में सोचता है, उनसे अस्सी गुना अधिक अतीत में जीता है। एक बार व्यक्ति भविष्य की चिंताओं से मुँह चुरा ले मगर अतीत की छाप कभी उसकी आँखें गीली करती है तो कभी होंठों पर मुस्कान बिखेर देती है।
नया कैलेंडर फिर ताजा करने लगता है बीते कल को और गति देने लगता है जीवन को। हम बीते कल की विशेष तारीखों को उँगलियों की पोरों पर रखकर बढ़ते रहते हैं नए कैलेंडर के साथ। स्मृतियों की पुनरावृत्ति की इस बेला पर स्वागत ही नए वर्ष का स्वागत है जहाँ हम कोशिश करते हैं कि पिछ्ला जो अच्छा था वो और अच्छा हो जाए। जो बिगड़ा था, वो सुधर जाए। जो थमा था, वो गति पाए। जो गया था, वो लौट आए। नयी आशाएं, नयी उमंगें, नयी कामनाएं, नयी चेष्टाएं यही तो लाती हैं नयी तारीखे।
नव वर्ष; नयी उपलब्धियां, नयी सोच, नयी परिकल्पनाएं और नए उत्साह लाए सभी की ज़िंदगी में।